Saturday, 24 February 2018
Thursday, 15 February 2018
Sunday, 11 February 2018
ਸਤਰੰਗੀ ਪੀਂਘ / इन्द्रधनुष
ਸਤਰੰਗੀ ਪੀਂਘ
कैनेडा से निकलने वाली पंजाबी पत्रिका
" पंजाब टुडे " में हिंदी के चुनिंदा कवियों
मोहन सपरा, सुशांत सुप्रिय, अलका सिन्हा, राजेन्द्र परदेसी, नीलिमा शर्मा, आरती तिवाड़ी व् राजवंत राज की कविताओं के साथ ही साथ मेरी हिंदी कविता 'इन्द्रधनुष ' का डॉ अमरजीत कौंके द्वारा किया गया
पंजाबीअनुवाद प्रकाशित....
शुक्रिया डॉ अमरजीत कौंके और पंजाब टुडे टीम...
" पंजाब टुडे " में हिंदी के चुनिंदा कवियों
मोहन सपरा, सुशांत सुप्रिय, अलका सिन्हा, राजेन्द्र परदेसी, नीलिमा शर्मा, आरती तिवाड़ी व् राजवंत राज की कविताओं के साथ ही साथ मेरी हिंदी कविता 'इन्द्रधनुष ' का डॉ अमरजीत कौंके द्वारा किया गया
पंजाबीअनुवाद प्रकाशित....
शुक्रिया डॉ अमरजीत कौंके और पंजाब टुडे टीम...
Thursday, 8 February 2018
THE HOME MISSES US TOO/ घर भी करता है याद हमें /घऽरो करैत छै याद/বিরহ কাতর ঘর বাড়ী
My translated Poem into English, alongwith original poem's clipping in Hindi by Late Sh.Om Purohit Kagad ji, Mathilli translation by Dr Sheo Kumar and in Bengali by Subir Majumder ji
THE HOME MISSES US TOO
When we are away from home
Not only members of our home
Our home too waits for us
Though all the articles are lifeless
These miss our touch.
Not only members of our home
Our home too waits for us
Though all the articles are lifeless
These miss our touch.
When we arrive back home
After a long gap
Threshold of our home
Doors and windows
Seem to be smiling
As if extending
Warm welcome to us
Sitting in courtyard
Sipping tea
In evening
Happiness of cup
Seems poured.
In plate, vegetables and roti
Cooked and served by mother
Seem to be swaying with joy
On our arrival.
In dense night
When we go to sleep
Cot of our home seems
To be giggling
While lulling us to sleep.
Ceiling of room seems to cast
Its unblinking eyes on me all through the night.
After a long gap
Threshold of our home
Doors and windows
Seem to be smiling
As if extending
Warm welcome to us
Sitting in courtyard
Sipping tea
In evening
Happiness of cup
Seems poured.
In plate, vegetables and roti
Cooked and served by mother
Seem to be swaying with joy
On our arrival.
In dense night
When we go to sleep
Cot of our home seems
To be giggling
While lulling us to sleep.
Ceiling of room seems to cast
Its unblinking eyes on me all through the night.
GHAR BHÉE KRTA HAI YAAD, poem composed in Hindi by Om Purohit kagad ji and translated by myself with his permission on May 20,2016
RAJNI CHHABRA
RAJNI CHHABRA
घऽरो करैत छै याद
जखन हम गाँम सँ बाहर रहैत छी
मात्र हमर परिवारे टा नहि
घऽरो हमर प्रतीक्षारत रहैत अछि
सब्टा चीज बौस भले निर्जीव हो
मुदा
हमर स्पर्श सँ ऊहो बंचित रहि जाएत अछि।
मात्र हमर परिवारे टा नहि
घऽरो हमर प्रतीक्षारत रहैत अछि
सब्टा चीज बौस भले निर्जीव हो
मुदा
हमर स्पर्श सँ ऊहो बंचित रहि जाएत अछि।
जखन घुरिकऽ गाँम अबैत छी
बहुत दिनक बाद
हमरा घऽरक सब्भ बौस
केवाड़ आ खिड़की
बुझना जाइत अछि मुस्किऐत
जेना प्रतीक्षा मे हो
जोश सँ भरल स्वागतार्थ।
बहुत दिनक बाद
हमरा घऽरक सब्भ बौस
केवाड़ आ खिड़की
बुझना जाइत अछि मुस्किऐत
जेना प्रतीक्षा मे हो
जोश सँ भरल स्वागतार्थ।
अपन खुलल आँगन मे बैठ
पिबैत चाह संग
कपकेर खुशी
बुन्न बुन्न घुलि रहल हो।
पिबैत चाह संग
कपकेर खुशी
बुन्न बुन्न घुलि रहल हो।
थारी मे परसल बनौल
मायकेर सिनेहक रोटी तरकारी
हमर आगमण पर जेना
खुशी सँ आह्लादित लगैत अछि।
मायकेर सिनेहक रोटी तरकारी
हमर आगमण पर जेना
खुशी सँ आह्लादित लगैत अछि।
जखन निशभेर राति मे
जाए छी सुतऽ
हमरा घऽरक चौकी
डेराइतो डेराएत
हँसैत लगए अछि
जखन सूइत रहै छी
घऽरक चार हमरा उपर
भरि राति आँखि गड़ेने रहैत अछि। जाए छी सुतऽ
हमरा घऽरक चौकी
डेराइतो डेराएत
हँसैत लगए अछि
जखन सूइत रहै छी
घऽरक चार हमरा उपर
मूल रचनाकार हिंदी : स्व. ओम पुरोहित कागद जी
मैथिली अनुवाद : डॉ शिव कुमार
इंग्लिश अनुवाद : रजनी छाबड़ा
बांग्ला अनुवाद : सुबीर मजुमदार जी
मैथिली अनुवाद : डॉ शिव कुमार
इंग्लिश अनुवाद : रजनी छाबड़ा
बांग्ला अनुवाद : सुबीर मजुमदार जी
বিরহ কাতর ঘর বাড়ী
~~~~~~~~~~~
যখন আমি বাড়ী থেকে
থাকি অনেক দূরে।
যেন মনে হয়
শুধু স্বজনেরা নয়
চেতনাহীন বাড়ীটিও যেন
কাতর আমার বিরহে।
~~~~~~~~~~~
যখন আমি বাড়ী থেকে
থাকি অনেক দূরে।
যেন মনে হয়
শুধু স্বজনেরা নয়
চেতনাহীন বাড়ীটিও যেন
কাতর আমার বিরহে।
দীর্ঘকাল প্রবাস যাপন অবসানে
ফিরে আসি ঘরের দুয়ারে
দরজা জানালার হাসি ভরা মুখ
অনুভবে পাই উষ্ণ অভ্যর্থনার সুখ।
উঠোনের রোদে বসে
গন্ধভরা চায়ের কাপে
জলখাবারের রেকাবে
মায়ের ভালবাসা উঠে উথলে।
ফিরে আসি ঘরের দুয়ারে
দরজা জানালার হাসি ভরা মুখ
অনুভবে পাই উষ্ণ অভ্যর্থনার সুখ।
উঠোনের রোদে বসে
গন্ধভরা চায়ের কাপে
জলখাবারের রেকাবে
মায়ের ভালবাসা উঠে উথলে।
রাতের গভীরে আমাকে পেয়ে
বিছানাটা কী কলকল কথা বলে,
ছড়া কাটে ঘুম পাড়ানিয়া
অনুভূত হয় মাথার উপর ছাদটির
এক দৃষ্টিতে চেয়ে থাকা।
~~~~~~~~~~~~~~~~
অনুবাদক— সুবীর মজুমদার।
বিছানাটা কী কলকল কথা বলে,
ছড়া কাটে ঘুম পাড়ানিয়া
অনুভূত হয় মাথার উপর ছাদটির
এক দৃষ্টিতে চেয়ে থাকা।
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অনুবাদক— সুবীর মজুমদার।
Monday, 5 February 2018
Sunday, 4 February 2018
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