जाऊंगा कहाँ
रहूँगा यहीं
रहूँगा यहीं
किसी किवाड़ पर
हाथ के निशान की तरह
पड़ा रहूँगा
हाथ के निशान की तरह
पड़ा रहूँगा
किसी
पुराने ताखे
या सन्दूक की गंध में
छिपा रहूँगा मैं
या सन्दूक की गंध में
छिपा रहूँगा मैं
दबा
रहूँगा किसी रजिस्टर में
अपने स्थायी पते के
अक्षरों के नीचे
अपने स्थायी पते के
अक्षरों के नीचे
या
बन सका
तो ऊंची ढलानों पर
नमक ढोते खच्चरों की
घंटी बन जाऊंगा
या फिर माँझी के पुल की
कोई कील
तो ऊंची ढलानों पर
नमक ढोते खच्चरों की
घंटी बन जाऊंगा
या फिर माँझी के पुल की
कोई कील
जाऊंगा
कहाँ
देखना
रहेगा सब जस का तस
सिर्फ मेरी दिनचर्या बदल जाएगी
साँझ को जब लौटेंगे पक्षी
लौट आऊँगा मैं भी
सुबह जब उड़ेंगे
उड़ जाऊंगा उनके संग...
रहेगा सब जस का तस
सिर्फ मेरी दिनचर्या बदल जाएगी
साँझ को जब लौटेंगे पक्षी
लौट आऊँगा मैं भी
सुबह जब उड़ेंगे
उड़ जाऊंगा उनके संग...
-केदारनाथ सिंह
जाऊंगा कहाँ / WHERE SHALL I
GO?
Where shall I go?
I will remain here only
On some door
Like impressions of hand
In some *’Taakhe’
Or in aroma of a box
I will remain hidden
Will lie pressed
In some register
Under alphabets of my
Permanent address
Or if it could be
I will turn into a bell
Tied around the neck of a
pony
Loaded with salt
Moving on high cliffs
Or will become a nail of
Bridge of some sailor
Where shall I go?
Just behold
Everything will continue as
it is
Only my daily routine will
change
When chirpers will return in
evening
I, too, will return with
them.
When, chirpers will fly again
in morning
I, too, will fly along with
them.
*taakhe: shelves on walls in house, where everynight
earthen lamp is lit to invoke Goddess Lakshmi.
2. HAND /हाथ
उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए
मैंने सोचा
दुनिया को हाथ की तरह
गर्म और सुंदर होना चाहिए
Holding her hand
In my hand
I wished
The whole Universe
Should be as full of warmth
and beauty
As her hand.
तुम आयीं
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ
जैसे छीमियों में धीरे- धीरे
आता है रस
जैसे चलते - चलते एड़ी में
काँटा जाए धँस
तुम दिखीं
जैसे कोई बच्चा
सुन रहा हो कहानी
तुम हँसी
जैसे तट पर बजता हो पानी
तुम हिलीं
जैसे हिलती है पत्ती
जैसे लालटेन के शीशे में
काँपती हो बत्ती !
तुमने छुआ
जैसे धूप में धीरे- धीरे
उड़ता है भुआ
और अन्त में
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया ।
जैसे हवा पकाती है गेहूँ के खेतों को
तुमने मुझे पकाया
और इस तरह
जैसे दाने अलगाये जाते है भूसे से
तुमने मुझे खुद से अलगाया ।
You arrived
Just as by and by
Pods of peas
Get sappy
Just as a thorn gets stuck in
heel
In process of walking
You appeared
As if a child is
Narrating story
You giggled
As if water murmurs
On the bank of river.
You shook
Just like a leaf shaking
As if wick quivers
Within glass of lantern
You touched me as if
Specks evaporate
Gradually
With sunlight
And lastly
Just as wind ripens
Fields of wheat
You matured me
And just as
Wheat is chaffed from husk
You separated me
From yourself.
हिमालय किधर है?
मैंने उस बच्चे से पूछा जो स्कूल के बाहर
पतंग उड़ा रहा था
उधर-उधर-उसने कहाँ
जिधर उसकी पतंग भागी जा रही थी
मैं स्वीकार करूँ
मैंने पहली बार जाना
हिमालय किधर है?
Where is Himalaya?
I asked a child
Who was flying kite
Outside his school.
There, there he replied
In the direction where his
kite was on wings
I have no hitch in
acknowledging
I came to know for the first
time
Where is Himalaya.
5 जाना / GOING
उसने कहा –मैं जा रही हूँ
जाओ—मैंने उत्तर दिया
यह जानते हुए कि जाना
हिंदी की सबसे खौफनाक प्रक्रिया है/
She announced---I am going
I reverted----go
Knowing very well that going
Is the deadliest verb of
Hindi language.
Five Hindi poems of Late
Kedar Nath Singh ji, extracted from KavitaKosh and translated by me into
English.
RAJNI CHHABRA
Retired Lecturer in English
Multi-lingual poetess,
polyglot, blogger and Numerologist
Ph: 9538695141
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