Monday, 23 April 2018

POLYGLOT: RAJASTHANI VERSION OF MY ENGLISH POETRY: RAVI PURO...

POLYGLOT: RAJASTHANI VERSION OF MY ENGLISH POETRY: RAVI PURO...: ·  ख्यातनांव कवयित्री, जगचावी उठाळाकार अर आखै चोखळै आपरी न्यूमेरोलॉजी  सूँ ठावी ठौड़ बणावण वाळी रजनी छाबड़ा जी री ...

On World Book Day

My 2 favourite poems from my English Poetry Book MORTGAGED, translated by reputed Poet and translator Ravi Purohit ji and eye captivating sketch from Artist Chetan Audichya from Udaipur

1.MUSK DEER

Enwrapping scent of musk

In himself

Confused was wandering

Musk deer

Ocean of happiness

Confined within himself

Was moving betrayed

In all the four directions

2.

Rainbow

You appeared like a rainbow

On the vista of my life.

Blue expanse of your love

Made joyous body n soul

Making it lush green.

Your pure gold like love

Colored the life

With aspirations and hope.

Under the golden sun of

Your affection

Weaving orangery dreams,

With you, I experienced

Vermilion expanse of love.

Our world beautified

With rainbow colors.

All the rainbow colors

Vanished after your departure

Persists only violet shadow of gloom,

My life is a vacuum without you.

अन्तराष्ट्रीय पोथी-दिन रै मंगळ टाणै हिन्दी, अंग्रेजी री ख्यातनांव कवयित्री रजनीजी छाबड़ा री अंग्रेजी कविता पोथी ‘Mortgaged’ री दो कविताओं रो राजस्थानी उथळो आप सारू...
मनभाऊ रेखाचित्र: मनमेळू मींत चेतन औदिच्य...

किस्तूरी-मिरग
.....................
किस्तूरी-सौरम
खुद में समेट्यां
भटकतो फिरै
मारग-भूल्यै गेलायत ज्यूं
फिरतोळ किस्तूरी मिरगकृ

आनंद समंदर
निज में धारियां
डाफाचूक पांवडा भूंवै
दसूं-दिस !
00
इन्दरधनख
.................
जूण रै आभै
इन्दरधनख-सो
प्रगट्यो थूं
लीलांवतै आकास ज्यूं
पसरयोड़ी थारी प्रीत
तन-मन में भर देवै हूंस
हरियाळी रा बीज मनड़ै
धीज-भरोसी पौध बणै ।
खर्यै सोनै ज्यूं साचो
थारो नेह
रंग भर रतियाय देवै
औ साव सूनो सूंसावतो जीवण
थारी प्रीत रै
पीळै-चमकीलै तावड़ै
नारंगी सपनां री बुणगट...
थारी संगत में सीखी
प्रेम-नेह री बारखड़ी
अर जाणियो इण लाली रो पसराव
इन्दरधनखी सपनां री रिमझोळ
मन संसार सुणावै हेत री सरगम ।
थारै पछै
रंग हुयग्या सगळा अदीठ
म्हैं ई हुयी रंगहीण-बेरंग
फगत विगत री कळकळ पड़छियां
मारै छौळां दूणै वैग सूं
थारै बिना म्हारी जिंदगी
साव निरजन बस्ती ज्यूं !

Thursday, 19 April 2018

अनुसृजन: साहित्यिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान पिघलते हिमखंड का मैथिली में अनुवाद


अनुसृजन: साहित्यिक और सांस्कृतिक अनुष्ठान 

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 पिघलते हिमखंड का मैथिली में अनुवाद 

साहित्य सृजन मन के भावों को उकेरने का माध्यम है और अनुवाद इन भावात्मक छवियों को अपनी भाषा के शब्द शिल्प में बांधकर और विस्तार देने का सशक्त साधन/
लेखन में भावाभिव्यक्ति जब दिल की गहराईयों से उतरती हैभाषा और प्रदेश के बंधन तोड़ती हुई, सुधि पाठकगण के मन में गहनता से स्थान बना लेती है/ यहाँ मैं यह बात अपने हिंदी काव्य संग्रह 'पिघलते हिमखंड' के सन्दर्भ में भी कह रही हूँ/ इस काव्य कृति की चुनिन्दा कविताओं के नेपाली, बंगाली, पंजाबी, राजस्थानी, मराठी, गुजराती में अनुवाद की श्रृखला में एक विशिष्ट कड़ी जुड गयी है; सम्पूर्ण काव्य संग्रह का मैथिली अनुवाद और यह सराहनीय अनुसृजन डॉ.शिव कुमार, एसोसिएट प्रोफेसर हिंदी, पटना विश्व विद्यालय के अथक प्रयासों का परिणाम है/
व्यक्तिगत रूप से डॉ शिव कुमार से कोई परिचय नहीं था/ फेसबुक की आभासी दुनिया के माध्यम से जान पहचान हुई/ मैंने आज तक अपने प्रथम हिंदी काव्य संग्रह होने से न होने तक के अलावा अपनी अन्य मौलिक और अनुसृजित काव्य कृतियों का कभी भी औपचारिक लोकार्पण नहीं करवाया/ सोशल मीडिया पर ही पाठक गण को अपनी कृतियाँ लोकार्पित किया करती हूँ/ बहुत से साहित्यिक प्रवृति के मित्रों व् प्रकाशकों से परिचय हुआ फेसबुक के माध्यम से/ डॉ.शिव ने भी मेरी कुछ रचनाएँ फेसबुक पर देखी, जिन में से पिघलते हिमखंड की रचनाएँ उन्हें काफी पसंद आयी और उन्होंने इस काव्य संग्रह की मैथिली में अनुवाद करने की इच्छा जतायी, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकारा/ यह उनकी निष्ठा और कार्य के प्रति समर्पण का ही फल है की इतने अल्प समय में इतना प्रभावी अनुसृजन हो पाया है/ मूल रचनाकार के मनोभावों को आत्मसात करना और उस में अपनी भाषा में अभिव्यक्त करते हुए शोभा में वृद्धि करना कोई आसान काम नहीं है; परन्तु डॉ शिवकुमार से इस अनुवाद कार्य को  बहुत सहजता से सम्पन्न किया/
यदि आप इन कविताओं को मैथिली में पढेंगे तो ऐसा आभास होगा जैसे कि यह मूलतः मैथिली में ही लिखी गयी हों/ यह अनुसृजनकर्ता की अत्यन्त प्रशंसनीय उपलब्धि है/ कुछ चुनिन्दा रचनाओं का आनन्द आप भी लीजिये, मूल हिंदी और अनुदित मैथिली रचना
मधुबन
कतरा
कतरा
नेह के
अमृत से
बनता पूर्ण
जीवन कलश

यादों की
बयार से
नेह की
फुहार से
बनता जीवन
मधुबन


मधुबन
बुन्न बुन्न
नेहक अमिय सँ
जिनगीक घैल
भरैत छै।
स्मृतिक
बसात आ
नेहक फुहार सँ
बनैत छै
जिनगीक मधुबन।



यह कैसा सिलसिला
कभी कभी दो कतरे नेह के
दे जाते हैं सागर सा एहसास

कभी कभी सागर भी
प्यास बुझा नहीं पाता

जाने प्यास का यह कैसा है
सिलसिला और नाता/

'"ई केहन अनुक्रमण"
कखनहुँ तऽ नेहक दू बुन्न 
दऽ जाएत छै सिन्धु सन तोष
कखनहुँ समुद्रो
पियास नहि मेटा पबैत छै
नै जानि पियासक ई केहन
अनुक्रमण आ नाता छै !



क्या जानें
बिखरे हैं आसमान में
ऊन सरीखे
बादलों के गोले
क्या जाने, आज ख़ुदा
किस उधेड़ बुन में हैं/

की जैन
छितराएल छै अकाश मे
ऊँन सन
मेघक ढेपा
की जैन आइ परमतमो
कोन गुण धुन मे लागल छैथ !


मैथिली अनुवाद सुधि पाठकों को सौंपते हुए, प्रभु से कामना करती हूँ कि डॉ शिव कुमार की अनुदित कृति साहित्य जगत में विशिष्ट पहचान बना पायें/ हृदय से आभरी हूँ अनुसृजनकर्ता की जिनके माध्यम से मेरे हिंदी काव्य संग्रह पिघलते हिमखंड को साहित्यिक रूप से समृद्धभाषा मैथिली में विस्तार मिल रहा हैं/ इस काव्य गुच्छ की सुरभि कहाँ कहाँ पहुँची, जानने की उत्सुकता और आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी/
  
रजनी छाबड़ा
बहुभाषीय कवियत्री व् अनुवादिका
गुरुग्राम (हरयाणा)