Monday, 27 August 2018

1. तुम्हीं बताओ ना 2. ज़िन्दगी की किताब से



तुम्हीं बताओ ना
"अहाँ कहू ने"
हमर नीन कें जखन पाँखि लागल
की अहुँक सेहो संग
उड़ा लऽ गेल
आ कि अधनीन राति मे
तरेगण गनवाक बीध
हम एसगरे निमाहलहुँ ? पृ० -३१


ज़िन्दगी की किताब से
"जिनगीक किताब सँ"
जिनगीक किताब सँ
जखन फाटि जाए छै
कोनो तहगर पन्ना
अधखरुए रहि जाए छै
जीबाक लिलसा
कखनहुँ कें मालि सँ
भऽ जाए छै गलती
तोड़ि दै छै एहन फूल
जेकरा टूटऽ सँ
मात्र ठारहिए टा नहि
भरि जाए छै
सौंसे फुलबारी मे उदासी
रहि जाए छै मुरझाएल गाछ
छाती मे नुकौने
दरदक कथा
जइ गाछ कें पानिक बदला
पटबऽ पकड़ैत छै
नोर आ नबका खून सँ
ओहि दरदक गाछ कें
फल की हेतैक!
फलक चिंता सँ
परयास तऽ नहि छोड़ल जाए छै
मृत्युक बढैत डेगक
शब्दक भय सँ
जीबाक बाट सँ मुँह
नहि मोड़ल जाए छै
जाबत साँस ताबत आश
गनल गुथल चुनल छन कें
मन भरि जीबाक मोह
छनेमे कैएक जुग
जी लेबाक इच्छा
जिनगी मे भरिदै छै
सगरो एतेक सुगन्ध
जे बिसबासे नहि होेएत छै
जे कोना टुटि जतैक ई डोएर
दरदक गाछ पर
अपनत्वक फूल फूलाएत छै
ई फूल रहौ वा नहि
एकर यादक (स्मरणकेर )सुगन्ध सँ
फुलबारी गमकै छै। पृ० ३२-३३
होने से न होने तक।
रजनी छाबड़ा
अनुवाद
डा शिव कुमार।

ज़िन्दगी एक ग़ज़ल थी



ज़िन्दगी एक ग़ज़ल थी
"जिनगी एगो गजल छल"
जिनगी एगो गजल छल
आब खिस्सा बनि गेल
बैभव छल अहाँक संग
अहाँक गेला बाद,
सांस लेबाक बहन्ना बनि गेल। पृ३४.
होने से न होने तक
"होमऽ सँ नइ होमऽ तक"
होमऽ सँ नइ होमऽ 
कें बीचक अन्तर 
गहींरगर सँ समेटने छै
अनगिनैत सबाल
लौटाए लेनाए अछि
तऽ देबे किएक
करैत छी
नइ मिलल रहैत स्वर्ग
तऽ छिनेबाको डर
नहि ने रहैत। पृ०३५
होने से न होने तक
रजनी छाबड़ा
अनुवाद
डा शिव कुमार

Tuesday, 7 August 2018

मैं तो धरा हूँ



मैं तो धरा हूँ 
तुमने जो बीज उपजाया 
मैने निजता से पनपाया 
फिर बेटी जन्मने का दोष 
मेरे ही सिर पर क्यो आया
copyright@
रजनी छाबड़ा