Monday, 27 August 2018

ज़िन्दगी एक ग़ज़ल थी



ज़िन्दगी एक ग़ज़ल थी
"जिनगी एगो गजल छल"
जिनगी एगो गजल छल
आब खिस्सा बनि गेल
बैभव छल अहाँक संग
अहाँक गेला बाद,
सांस लेबाक बहन्ना बनि गेल। पृ३४.
होने से न होने तक
"होमऽ सँ नइ होमऽ तक"
होमऽ सँ नइ होमऽ 
कें बीचक अन्तर 
गहींरगर सँ समेटने छै
अनगिनैत सबाल
लौटाए लेनाए अछि
तऽ देबे किएक
करैत छी
नइ मिलल रहैत स्वर्ग
तऽ छिनेबाको डर
नहि ने रहैत। पृ०३५
होने से न होने तक
रजनी छाबड़ा
अनुवाद
डा शिव कुमार

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