किछु अनुदित मैथिली काव्य (मूल हिन्दी रजनी छाबड़ा) 'होने से न होने तक' से
मनमौजी
"बेपरवाह"
हमरा सँ कोन
जोर गुड्डी केर
चिड़ै हम सगर
अकाश केर
सगर अकाश
अपन पाँखि सँ नापल
सूत गुड्डी केर
दोसराक हाथ छै
उड़ब अकाश
मुदा जड़ि धरती केर।
पृ०67
"बेपरवाह"
हमरा सँ कोन
जोर गुड्डी केर
चिड़ै हम सगर
अकाश केर
सगर अकाश
अपन पाँखि सँ नापल
सूत गुड्डी केर
दोसराक हाथ छै
उड़ब अकाश
मुदा जड़ि धरती केर।
पृ०67
बसंत
"बसंत"
समय
जेहि घाॅ पर
मलहम लगौलक
मौसम आबि ओकरे
हरियाबैक
काम दोहरेलक
हमर पीड़ाक
आइद ने अन्त
सुखाएल घाॅकें
फेर सँ हरियाएब
अछि
हमर बसंत।
पृ०68
पक्षपात
"पुर्वाग्रह"
दोख लगतै ओकरा पर
पुर्वाग्रहक
जदी कनिको दुख
हमरा नहि देता
हमहुँ तऽ हुनकहि
एकगोट टुकड़ी छी
ओही रस्ताक एकटा बटोही
सुख दुखक छाह में
जतए सभ चलैत अछि
बिन छुअल रहि जाए
कहुँ
दुनियाक चलैन सँ
तऽ बदनामे ने हेताह
हमर भाग लिखनहार।
पृ०69
होने से न होने तक
रजनी छाबड़ा
अनुवाद
डा शिव कुमार प्रसाद
सुख दुखक छाह में
जतए सभ चलैत अछि
बिन छुअल रहि जाए
कहुँ
दुनियाक चलैन सँ
तऽ बदनामे ने हेताह
हमर भाग लिखनहार।
पृ०69
होने से न होने तक
रजनी छाबड़ा
अनुवाद
डा शिव कुमार प्रसाद
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