Sunday, 15 July 2018

SANSKRIT VERSION OF MY HINDI POEMS FROM "HONE SE NA HONE TAK"

.नीरवः
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यःमुञ्चति
अस्य जीवनस्य कारावासात्,प्राप्यते
एकं नवजीवनम्।
निर्जीवः तु ते भवति
यःजीवति तदोपरान्त।
न भवति कश्चिदुमंगः,न तरंगः,शेषं भवति
केवलं नीरवः,प्रति आल्हादस्य क्षणमपि
करोति खिन्नम्।
वीराना
जो छूट जाते हैं
इस ज़िन्दगी की कैद से
पा जाते हैं
एक नयी ज़िन्दगी
बेजान तो वो रहते है
जो जीते हैं उनके बाद
न रहती हैं कोई आस,
न उमंग
न तरंग
रह जाता है
बस वीराना
हर खुशी का लम्हा भी
कर जाता हैं उदास/




गृहम्
****
स्नेहमपनत्वञ्च
यदा प्राचीराणां
छदिःभवति
सः सदनः
गृहं कथ्यते।
घर
प्यार औ अपनत्व
जहाँ दीवारों की
छत बन जाता है
वो मकान
घर कहलाता है/


.मनसस्य वाताटः
***********वाताटस्येव चंचलः मनः
अपारं चंचलतां सहितः
स्पृशनिच्छति
आनभस्य विस्तारः।
पर्वतान्,सागरानट्टालिकान्
अदृष्ट्वा
सर्वाः बाधाः
पदान् अग्रे एव वर्धन्ते।
जीवनस्त क्लान्तं
दूरीकरणाय भवेत्
मनसस्य वाताटः
स्वप्नानां च गगनः
यस्मिन् मनःउड्डीयते
निर्भयं,सप्तवर्णानि उड्डानम्।
परं किं ददाति सूत्रं
परहस्तयोः?प्रति पलं भयं
वसति मनसे
जाने कदा अत्रुट्यत्
कदा परहस्तगते अभवत्?
चंचलतां,चपलतां
आदाय मनसः पश्यति
कल्पनायाः दर्पणे,परं सत्यस्य धरातले
न्यस्तःपदमेव
यच्छति जीवनस्य अर्थः


मन की पतंग
पतंग सा शोख मन
लिए चंचलता अपार
छूना चाहता है
पूरे नभ का विस्तार
पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं
अनदेखी कर
सब बाधाएं
पग आगे ही आगे बढाएं
ज़िंदगी की थकान को
दूर करने के चाहिए
मन की पतंग
और सपनो का आस्मां
जिसमे मन भर सके
बेहिचक,सतरंगी उड़ान
पर क्यों थमाएं डोर
पराये हाथों में हर पल खौफ
रहे मन में जाने कब कट जाएँ
कब लुट जाएँ
चंचलता,चपलता
लिए देखे मन
ज़िन्दगी के आईने
पर सच के धरातल
पर टिके कदम ही
देते ज़िंदगी को मायने
हिंदी कविता :रजनी छाबड़ा
संस्कृत अनुवाद: इला पारीक

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