Tuesday, 26 June 2018

किछु अनुदित मैथिली काव्य (मूल हिन्दी रजनी छाबड़ा)

डॉ. शिवकुमार प्रसाद
किछु अनुदित काव्य (मूल हिन्दी रजनी छाबड़ा)- आगाँ
(PAGHALAIT HIMKHAND
Maithili translation of ‘PaighalteHimkhand’
An Anthology of Hindi Poems by Rajni Chhabra from Hindi into Maithili by Dr. Sheo Kumar Prasad.)

बन्हकी
हाथ जोड़ने
माथ
झुकौने
सिकुड़ल समटल सन
ठाढ़ छल ओ
खिड़कीसँ
झरैत
किरिण लग
अपन कलाकीर्तिक आगू 
चित्रपट देखबैत छेलइ
क्षितिज छुवाक आसमे 
पेंग भरैत
उन्मुक्त पाखी
आर सोझामे बिनु पाँखिक
चिड़ए सन
आहैत
भाव नेने
ओ चित्रकार
बन्हक राखि चुकल छल
अपन अनुभूतिकेँ
कल्पना
सम्वेदना
अपन कलाकेँ 
संरक्षक लग। 

 



की जानि
छितराएल छै अकासमे
ऊँन सन
मेघक गोला
की जानि आइ परमतमो
कोन गुण धुनमे लागल छथि

 



परिचय
अन्हारकेँ
अपन छातीमे समेटने
जेना दीप बनबै छै
अपन दीपित परिचय।

ओहिना अन्तरमे
अपन नोर नुकेने
संसारकेँ देमए पड़त
मात्र अपन हँसी ।

अपन बेनाओं जिनगीकेँ
देमए पड़त अहिना
नव परिचय। q

 



हमर दियारी
सेहन्ताक बातीसँ
जरेलहुँ
एकटा दियारी
अहाँक नाओं।

लाखक लाख दियारी
अहाँक सिनेहक
अपनहि
झिलमिला गेलइ। 

 



मनक बन्न केबाड़
एहिसँ पहिने की
अपन अधखरुआ कचोट
अहाँकेँ चकनाचूर कऽ दिए
सगर जिनगी हँसबासँ 
कऽ दिए नचार
फोलि दियौ
मनकेर केवाड़
आ निकालि दियौ
अपन मनक विषाद।

दरद तँ सभकेँ हृदयमे रहिते छै
दरदकेँ पुरबे पुरुषासँ
सभकेँ सम्बन्ध छै
किछु अपनो कहू किछु हमरो सुनू 
दरदकेँ मिल जुलि सहू।

एहिसँ पहिने कि ओ
बहैत बहैत बनि जाए भोकन्नर
सिनेहक मलहमसँ
करू ओकरा फराक
सिनेहक अमृत पटा
सुख दुख लिअ बाँटि
मनक संग जीवन
सिनेहसँ करू पूर
फोलि दियौ मनक बन्न केबार
आ बिषाद करू दूर। 

 



घा
मन आ आँखिक
बीच
बड़ गहींर
नाता छै 
मनक घा
आँखिक
नोरे बनि ने
बहै छै। 


 



बहुत अछि
एक गोट सपना
निस्तेज आँखिक लेल।

एकटा सिसकी
निःशब्द ठोरक लेल।

एकटा चिप्पी
फाटल छातीकेँ
सिबाक लेल।

बहुत छै 
एतेक समान
हमरा जीबा लेल। 

 



बौआइत मन
बौआइत मनकेँ
जखन जिनगीक कोनो
अनभुआर रस्तापर
अपन मनक संगी
मिल जाइ छै,

तँ ओकर चाह रहै छै
कहियो नहि रूकै
ओ रस्ता
एक एक क्षण बनि जाए
जुग सन
यात्रा अहिना चलैत रहए चलैत रहए
जुग जुगान्तर धरि। 

 



अहाँ बिनु
अहाँ बिनु 
हिरदे एना
बेकल रहैत अछि
जे दिन उगिते
साँझ बितबाक 
बाट ताकए लगै छी। 

 



केकरा चिन्ता रहै छै
केकरा चिन्ता रहै छै बिहाड़िक
बड़का अन्हरक पछाइत।

सभटा दुख छोट भऽ जाइ छै
कोनो बड़का बिपैत एलाक पछाइत। 

 



सन्तोषमे ओ सुआद केतऽ!
सन्तोषमे ओ केतऽ पाबी
जे बेकलतामे सुआद छै
सनकल बेकलतेसँ
भेटए सदैत सफलता छै।

सन्तोष जँ ठेकान तँ 
रस्ता बेकलता छै। 

Tuesday, 19 June 2018

ABOUT POETRY OF LATE OM PUROHIT KAGAD JI

Dear friends!
Very shortly, I will humbly present to all the voracious readers,my English Version of Rajasthani and Hindi Poems of Late Sh. Om Purohit Kagad.
Late Sh. Om Purohit kagad is a powerful signature in the literary world of Rajasthani and Hindi. He carved a niche for himself in the corridors of poetry, story writing and editing in a very early age.
Om Ji has authored 8 Poetry books in Rajasthani and three Poetry books in Hindi, besides five books of literature for children. He has also edited several books. He has earned several accolades on local and state level. He worked ceaselessly with utmost sincerity, perseverance and dedication for writing poety, short stories and non-fiction for enriching Rajasthani and Hindi.
His poems are a sincere effort to connect us to our roots and invoke us to protect environment. In this materialistic world, we are getting devoid of moral values. Pathos of moral bankruptcy , social degeneration, love for nature, concern for human values and family bonds is amply expressed in his poems. His world of experience in extremely wide and covers rainbow colours of life. He is poet of stanch values, with a philosophical tinge in his writings, especially while expressing his feeling about life, death and life beyond death. He has spontaneity in his writings. His poems emerge from depth of heart and directly establish a link with heart of readers. Some of his poems are laconic and marked with brave brevity, but compel the reader to contemplate a lot; such is the entrancing impact of his poems.
He pens his feelings in a simple and lucid language and the reader starts identifying himself with his compositions.
I am diehard fan of his literary works. I chanced to get introduced to him firstly on facebook and afterwards, only once in life when he visited me in Bikaner along with Dr. Neeraj Daiya. It was nearly two months before his accidental demise. During his short visit, he presented me his latest Rajasthani Poetry Book ‘Bahot Andharo Hai’ and Hindi Poetry Book “kagaz Pr Suraj’. He also expressed his wish to get it translated into English by me. I was already working on translation of his choicest poems of Rajasthani and Hindi, mailed to me, by him earlier. His untimely departure from this mortal world was a big shock to me; as he was a friend and guide to me.
I have translated his several poems from Rajasthani and Hindi into English, with consent from his better half, Mrs. Bhagwati kagad. I have put my best efforts that the originality of the poems and its essence and echoes remain intact in the entire recreated poems. it is a humble effort of mine to make it available to voracious readers of English Poetry on global level.
Sometimes gardener
Commits a lapse,
Plucks such a flower
Which when plucked
Causes desolation,
Not merely on the branch,
But the whole orchard.
Leaves behind withered plant
Enwrapping pangs of sorrow
In its bosom.
Blossoms of affinity
Bloom on plant of pang.
Whether these blossoms
Persist or wither
Their sweet memories
Shed fragrance in
Orchard of life.
( Extracted from my English Poetry book ‘Mortgaged)
I pray to Almighty that fragrance of his poems reaches every nook and corner of the world.
Rajni Chhabra.
Multi –lingual poetess, Polyglot & Numerologist



Wednesday, 6 June 2018

(यादों की राख से) स्मृतिक छौर सँ


(यादों की राख से)
स्मृतिक छौर सँ
दफनाएल स्मृतिक छौर सँ
किएक चिनगी जकाँ
सुनैग उठएये
चर्चा कखनो किएक नए
हो अहाँक
जाएन कि अजाएन
फेन कोनो बहन्ने
कहाँ रुकए छै नोर*
(होने से न होने तक - - रजनी छाबड़ा )
अनुवाद
डा शिव कुमार

संदली एहसास) चानन सनअनुभूति

 
मेरे प्रथम हिंदी काव्य संग्रह से कविता "संदली एह्सास ' का मैथिली में अनुसृजन डॉ शिव कुमार द्वारा / आप इससे पूर्व मेरे हिंदी काव्य संग्रह 'पिघलते हिमखंड ' का मैथिली में अनुवाद कर चुके हैं/ मैथिली मे अनुदित काव्य संग्रह का शीर्षक है ' पघलैत हिमखंड'
संदली एहसास)
चानन सनअनुभूति
बहार मे बहैत
पनिएल बसात मे अहाँ
कहाँ देखाए छी
बसात सँ सिनेह बरसाबएत
धरतीक छाती
नहि छू पबैत छी
बिन छुअल छुअब सँ
अहाँ अपन हेबाक
चानन सन अनुभूति
करा देते छी।
रजनी छाबड़ा
अनुवाद
डा शिव कुमार।

जात्री मेघ/ पथिक बादल


जात्री मेघ ''
एकटा जात्री मेघ
जे रुकल छल छनिक काल
हमर आँगन ऊपर
अपन स्नेहक शीतल छाह लेने
समय केर निर्मम हवाक संग
नहि जानि जिनगिक
कोन मोड़ पर रुकि जाय



रहि रहि कें मन मे
एकटा कचोट सन उठैत अछि
अफसोच! एक मुट्ठी अकाश
हमरो जँ रहएत,
बन्न क' लैतहुँ ओहि मे
ओ जात्री मेघ कें
अपन रौद सँ जरैत आँगन मे
मलय पवनकेर बास रहैत।
रजनी छाबड़ा
मैथिली अनुवाद
डा शिव कुमार

Monday, 4 June 2018

मेरे काव्य संग्रह 'पिघलते हिमखंड' से चयनित हिंदी कविताओं का संस्कृत अनुवाद



सभी सुधि पाठकों के समक्ष अपने हिंदी काव्य संग्रह 'पिघलते हिमखंड', से चयनित ३ कविताओं का संस्कृत अनुवाद प्रस्तुत करते हुए असीम हर्ष का अनुभव हो रहा है/ अनुवादकर्ता हैं मेरी प्रिय विदुषी मित्र इला पारीक/ आप संस्कृत की व्याख्याता हैं/ रवि पुरोहित जी के प्रसिद्ध राजस्थानी काव्य संग्रह :उतरूँ उंढे कालजे' का संस्कृत अनुवाद ;स्नेहसौरभम,सुश्री मीनाक्षी गर्ग व् नीलम पारीक जी के साथ संयुक्त रूप से कर चुकी हैं/ बहुत बहुत आभार इला जी/
इसके अतिरिक्त इस काव्य संग्रह की चुनिन्दा कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद( स्वंय) पंजाबी (डॉ अमरजीत कौंके) राजस्थानी ( रवि पुरोहित जी ) नेपाली ( डॉ बीरभद्र, मराठी (श्रीमती ज्योति वावले) गुजराती( श्रीमती अलका मालिक) बंगाली( सुबीर मजुमदार) ने किया है/ इसी श्रृखला में आज एक और कढी जुड़ गयी है: कुछ कविताओं का संस्कृत अनुवाद
मैथिली में पूर्ण काव्य संग्रह के अनुसृजन का श्रेय जाता हैं डॉ शिव कुमार को/
आप सब अनुवादकों की भी हृदय से आभारी हूँ/स्नेह बनाये रखियेगा/
नीरवः
****
यःमुञ्चति
अस्य जीवनस्य कारावासात्,
प्राप्यते
एकं नवजीवनम्।
निर्जीवः तु ते भवति
यःजीवति तदोपरान्त।
न भवति कश्चिदुमंगः,
न तरंगः,
शेषं भवति
केवलं नीरवः,
प्रति आल्हादस्य क्षणमपि
करोति खिन्नम्।


वीराना

जो छूट जाते हैं
इस ज़िन्दगी की कैद से
पा जाते हैं
एक नयी ज़िन्दगी

बेजान तो वो रहते है
जो जीते हैं उनके बाद
न रहती हैं कोई आस,
न उमंग
न तरंग
रह जाता है
बस वीराना
हर खुशी का लम्हा भी
कर जाता हैं उदास/


🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
गृहम्
****
स्नेहमपनत्वञ्च
यदा प्राचीराणां
छदिःभवति
सः सदनः
गृहं कथ्यते।

घर

प्यार औ अपनत्व
जहाँ दीवारों की
छत बन जाता है
वो मकान

घर कहलाता है



🌹🌹🌹🌹
मनसस्य वाताटः
***********
वाताटस्येव चंचलः मनः
अपारं चंचलतां सहितः
स्पृशनिच्छति
आनभस्य विस्तारः।
पर्वतान्,सागरानट्टालिकान्
अदृष्ट्वा
सर्वाः बाधाः
पदान् अग्रे एव वर्धन्ते।
जीवनस्त क्लान्तं
दूरीकरणाय भवेत्
मनसस्य वाताटः
स्वप्नानां च गगनः
यस्मिन् मनःउड्डीयते
निर्भयं,सप्तवर्णानि उड्डानम्।
परं किं ददाति सूत्रं
परहस्तयोः?
प्रति पलं भयं
वसति मनसे
जाने कदा अत्रुट्यत्
कदा परहस्तगते अभवत्?
चंचलतां,चपलतां
आदाय मनसः पश्यति
कल्पनायाः दर्पणे,
परं सत्यस्य धरातले
न्यस्तःपदमेव
यच्छति जीवनस्य अर्थः।



मन की पतंग


पतंग सा शोख मन
लिए चंचलता अपार
छूना चाहता है
पूरे नभ का विस्तार
पर्वत,सागर,अट्टालिकाएं
अनदेखी कर
सब बाधाएं
पग आगे ही आगे बढाएं

ज़िंदगी की थकान को
दूर करने के चाहिए
मन की पतंग
और सपनो का आस्मां
जिसमे मन भर  सके
बेहिचक,सतरंगी उड़ान

पर क्यों थमाएं डोर
पराये हाथों में 
हर पल खौफ
रहे मन में 
जाने कब कट जाएँ
कब लुट जाएँ

चंचलता,चपलता
लिए देखे मन
ज़िन्दगी के आईने
पर सच के धरातल
पर टिके कदम ही
देते ज़िंदगी को मायने


रजनी छाबड़ा 












संस्कृत अनुवाद: इला पारीक
मूल रचना हिंदी :  रजनी छाबड़ा