Wednesday, 6 June 2018

जात्री मेघ/ पथिक बादल


जात्री मेघ ''
एकटा जात्री मेघ
जे रुकल छल छनिक काल
हमर आँगन ऊपर
अपन स्नेहक शीतल छाह लेने
समय केर निर्मम हवाक संग
नहि जानि जिनगिक
कोन मोड़ पर रुकि जाय



रहि रहि कें मन मे
एकटा कचोट सन उठैत अछि
अफसोच! एक मुट्ठी अकाश
हमरो जँ रहएत,
बन्न क' लैतहुँ ओहि मे
ओ जात्री मेघ कें
अपन रौद सँ जरैत आँगन मे
मलय पवनकेर बास रहैत।
रजनी छाबड़ा
मैथिली अनुवाद
डा शिव कुमार

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