My Hindi poems translated into Rajasthani by Sahitya akademi award winner for Rajasthani Ravi Purohit ji. I express my heartiest gratitude to Ravi ji and editorial team of Yugpaksh
उल्फत
नींद को पंख लगे कभी
कभी पंखों को नींद आ गयी
बेताबी में सुकून कभी
कभी सुकून पे
बेताबी छा गयी
सुर्ख उनींदी आँखों से
अधजगी रातों में
तारे गिनने की कवायद
तेरी उल्फत में
यही रस्म ए वफ़ा
हमें रास आ गयी/
तुमसे कैसा यह नाता है
खुशियाँ तुम्हें मिलती है
दामन मेरा भर जाता है
करवटें तुम बदलते हो
सुकून मेरा छिन जाता है
आहत तुम होते हो
आब मेरी आँखों में
उभर जाता है
तुम्हारी आँखों से
अश्क़ छलकने से पहले
अपनी पलकों में समेटने को
जी चाहता है
अठखेलियां करती
लहरों में
क्यों तेरा अक्स
नज़र आता है
खामोश फिज़ाएँ
गुनगुनाने लगती हैं
तेरा ख़याल
मुझ में रम जाता है
कानों में सुरीली
घंटियाँ सी बजती है
जब तेरी आवाज़ का
जादू छाता है
ज़िन्दगी का आधा खाली ज़ाम
आधा भरा नज़र आता है
अनाम रिश्ते को
नाम देने की कोशिश में
शब्दकोष रीत जाता है
तुम्ही कहो ना
तुमसे यह कैसा
नाता है
रेत के समन्दर से
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ज़िन्दगी
रेत का समन्दर
शोख सुनहली
रूपहली
रेत सा भरा
आमंत्रित करता सा
प्रतीत होता है
एक अंजुरी ज़िन्दगी
पा लेने की
हसरत लिए
प्रयास करती हूँ
रेत को अंजुरी में
समेटने का
फिसलती सी लगती है
ज़िन्दगी
क्षणिक
हताश हो
खोल देती हूँ
जब अंजुरी
झलक जाता है
हथेली के बीचों बीच
एक इकलौता
रेत का कण
जो फिसल
गए
वो ज़िन्दगी के पल
कभी मेरे
थे ही नहीं
मेरी ज़िन्दगी का
पल
तो
वो है
जो जुड़ गया
मेरी हथेली के बीचों बीच
एक इकलौता
रेत का कण
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