Tuesday, 20 June 2017

तपते पत्थरों पर ज़िंदगी से मुलाक़ात /

तपते पत्थरों पर ज़िंदगी से मुलाक़ात

शहर के नन्हे परिंदे
न घरौंदा
न ही शज़र का
न अम्मी का साया
ये कैसा दौर आया
ज़मींन पर ही आशियाना बनाया

रजनी छाबड़ा



तपते पत्थरों पर जीवन से भेंट

शहर के दो नन्हे पाखी
न नीड़
न तरु
और न ही
 माँ का साया
यह कैसा दौर आया
सूने फर्श पर  ही
बसेरा बनाया

उर्दू और हिंदी में मेरी रचना

रजनी छाबड़ा





No comments:

Post a Comment