तपते पत्थरों पर ज़िंदगी से मुलाक़ात
शहर के नन्हे परिंदे
न घरौंदा
न ही शज़र का
न अम्मी का साया
ये कैसा दौर आया
ज़मींन पर ही आशियाना बनाया
रजनी छाबड़ा
तपते पत्थरों पर जीवन से भेंट
शहर के दो नन्हे पाखी
न नीड़
न तरु
और न ही
माँ का साया
यह कैसा दौर आया
सूने फर्श पर ही
बसेरा बनाया
उर्दू और हिंदी में मेरी रचना
रजनी छाबड़ा
शहर के नन्हे परिंदे
न घरौंदा
न ही शज़र का
न अम्मी का साया
ये कैसा दौर आया
ज़मींन पर ही आशियाना बनाया
रजनी छाबड़ा
तपते पत्थरों पर जीवन से भेंट
शहर के दो नन्हे पाखी
न नीड़
न तरु
और न ही
माँ का साया
यह कैसा दौर आया
सूने फर्श पर ही
बसेरा बनाया
उर्दू और हिंदी में मेरी रचना
रजनी छाबड़ा
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